Sunday, December 14, 2014

मोती



  मोती ’’


[आज से कुछ दिनों पहले तक पूरा मोहल्ला उसकी वीरता के गुणगान करता नहीं थकता था | चारो तरफ केवल उसी की ही चर्चा होती थी | लेकिन उसे अब क्या हो गया कहाँ गयी उसकी वीरता, क्यों वह उनका नाम सुनते ही भाग जाता है...........]
दिल्ली  , मेरे लिये अजीब  सा अपनापन  लिये हुए है | ये शब्द, ये शहर मुझे बहुत पसंद है | ओर हो भी क्यों ना, इसी शहर ने मुझे रोज़गार जो दिया | हम भारतिय जब किसी चीज़ को पसंद  करते है | तो उसके पीछे कारण उस चीज़ के सुंदर  होना या ना होना नही होता, बल्कि यह केवल इस बात पर निर्भर करता है, की उस वस्तु से आपकी भावनाये कितनी जुडी हुई है और शायद इन्ही भावुक बातों के कारण दिल्ली मुझे पसंद है | मुझे आज तक जनवरी की वो सर्द सुबह याद है | जब मैंने पहली बार दिल्ली की सरजमी पर कदम रखा तो देखा खाली सड़क , ठंडी ठंडी हवा मन को प्रफुल्लित कर रही थी | मैं उस जगह का नाम नहीं जानता था | चारो ओर ऊँची ऊँची इमारते ही दिखाई दे रही थी | मैंने पहले बार ऐसा नजारा देखा था| वो पल मेरे लिए अनमोल था, बाद में पता चला उस जगह का नाम ITO था | और सड़के वहाँ इस लिए खाली थी की उस समय सुबह के .३० या .०० का समय हुआ था बस कुछ ही देर में वहाँ traffic का विशालकाय दानव दस्तक देने वाला था |
 दिल्ली अपने अंदर जो अजीब सी खूबसूरती लिए हुए है इसे बयां करने का शायद ये सही  समय नहीं है क्योकि  आज कहानी का केन्द्र बिंदु दिल्ली नहीं है बल्कि दिल्ली के नजदीक बसा एक छोटा सा शहर है| उस शहर में एक मोहल्ला  है, देवपुर जिसके ब्लाक o में मेरे  बचपन का कुछ भाग  बिता था|  हमारे इस ब्लाक हर जाती-धर्म के लोग रहते थे | भारत के लगभग हर  प्रान्त का कोई कोई प्रतिनिधि हमारे ब्लाक में मौजूद था| कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई पंजाबी कोई बिहारी और सभी प्रेम मिलाप के साथ रहते थे|  इस ब्लाक के   मकान छोटे थे | दो कमरे रसोई बाथरूम और घर के अंत में के छोटा सा आगंन, ब्लाक का अंतिम मकान, . M १५/१५  ही  हमारी इस कहानी का केन्द्र बिंदु है | इस मकान के मालिक थे, पंडित राम प्रसाद मिश्रा, पंडित जी हिंदू धर्म के कट्टर अनुयायी थे| सुबह सुबह उठ जाना नहा धो कर पूजा पाठ  करना उनका रोज का काम था पंडित जी के दो बेटे थे बड़ा बेटा रमेश मिश्रा पंडित जी के सामान तो नहीं था पर पढ़ने लिखने में काफी होशियार था| मैं उनसे काफी दिन ट्यूशन भी पढ़ा था मिश्रा जी का कौन मिश्रा ,अरे पंडित जी को मोहल्ले के लोग मिश्रा जी ही कहकर संबोधित करते थे, हाँ तो मिश्रा जी का छोटा बेटा विष्णु बिलकुल अलग था| लड़ाई झगड़े में अव्वल बाकि सभी सद्कर्म उसे छु भी नहीं सकते थे| वो बात अलग है, की दोनों बेटे अच्छी नौकरी करते थे| ये सब मिश्राइन आंटी के सद कर्मो का ही फल था | कुल मिला कर मुझे इस परिवार के सभी सदस्य बहुत ही पसंद थे| मैं अक्सर उनके घर जाता रहता था| मिश्रा जी शायद बिहार के किसी जिले के निवासी थे उनकी भाषा में जो भोजपुरी भाषा का बेहतरीन मिश्रण था| उसमे एक अजीब सा रस था, वो मुझे बहुत ही अच्छा लगता था| हलाकि उस वक्त मैं काफी छोटा था, पर मुझे उस भाषा में एक अजीब सा अपनापन नज़र आता था| इसका क्या कारण था मैं आज तक नहीं समझ पाया| लेकिन आज भी जब मैं कंही भोजपुरी भाषा सुनता हूँ, तो मन प्रसन्न हो जाता है| अभी कुछ दिनों पहले ही रमेश भैया की शादी हुई थी| नयी नयी बहु के आने से घर में हँसी खुशी का माहोल था| मिश्रI जी की बीवी जिन्हें मोहल्ले में सब मिश्राइन कहके बुलाते थे|  इस शादी से कुछ ज्यादा ही खुश थी| मुझे वो आंटी बहुत अच्छी लगती थी| वो मुझे बहुत प्यार करती थी| वो प्यार का सागर थी शायद सभी औरते ऐसी ही होती हैं| अरे यार कहानी के मुख्य पात्र के बारे में तो मैं बताना ही भूल गया मिश्रा जी के घर में एक कुत्ता था, उप्स  अरे अरे ये मैं क्या बोल गया उसे कुत्ता कहना allow नहीं हैं| उसका नाम मोती था| वह मिश्रा जी के घर का ही सदस्य था| यदि किसी ने उसे मिश्रा परिवार के सामने कुत्ता बोल दिया तो उसकी खैर नहीं आप मिश्रा जी से कह नहीं देना की मैंने मोती के बारे में ऐसा लिखा है नहीं तो आप मेरे जैसे लेखक की कोई कृति भविष्य में शायद ही पढ़ पाए| मोती एक बहुत ही बहादुर कुत्ता था| उसे बचपन से ही बहुत प्यार मिला था| उसके जन्म के दो दिन बाद ही उसकी माँ की म्रत्यु हो गयी थी| तभी मिश्रा जी उसे अपने घर ले आये थे, शुरू में तो आंटी जी ने बहुत गुस्सा  किया पर पुरे परिवार की इच्छा को उन्हें मानना ही पड़ा| अब तो जितना प्यार वो उसे करती हैं शायद ही उसकी सगी माँ उसे कर पाती | मोती भी उसे मिले इस प्यार की बहुत कदर करता था| शायद जानवर इस गुण  में इंसानों से बेहतर हैं| वो प्यार की कीमत को अपने स्वार्थ से सदेव उपर रखते हैं जबकि अपने को सर्व गुण सम्पन समझने वाले मानव के लिए स्वार्थ के सामने सबकुछ कमजोर पड़ जाता हैं
हमारा शहर के आस पास काफी गांव और जंगल पड़ते थे| कुछ दिनों पहले से ही कुछ जंगलो को काट  कर वहाँ अप्पार्टमेन्ट बनाये जा रहे थे जिस की वजह से वहाँ  के कुछ जानवरों का पलायन हमारे शहर की और हो गया था| सभ्यता के विकास ने मनुष्यों को जानवर से श्रेष्ट बना दिया जिसके कारण मनुष्यों और जानवरों के बीच एक अद्रश्य सीमा रेखा का निर्माण हो गया जानवरों ने सदा ही   इस सीमा रेखा का पालन किया लेकिन मनुष्यों ने अपने हितो के लिए अपने हिस्से के साथ जानवरों के हिस्से की जमीं पर भी कब्ज़ा करलिया तो जानवरों के पास मनुष्यों के हिस्सों में प्रवेश करने के आलावा कोई चारा नहीं बचा और उन्होंने भी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उस सीमा रेखा को पर कर दिया।
कुछ बंदरो ने हमारे मोहल्ले में आतंक मचा रखा था| आज कल यंहा इनका राज कायम था| ये जब चाहे किसी का भी सामान उठा ले जाते हैं| किसी के कपडे किसी के बर्तन एक दिन तो मिश्रा जी सुबह जब तल्लीन होकर भगवत गीता का पाठ पढ़ रहे थे| तो कुछ बंदर उनके पास आकर बैठ गए और ध्यान  से सुनने लगे जब मिश्रा  जी ने देखा तो  भागे धोती उठा कर और बंदर भगवतगीता की किताब कमाल की बात ये रही की उन्होंने उस किताब को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया| आये दिन मोहल्ले में बंदर और इंसानों के बीच जंग होती रहती थी| जानवर में बुध्ही इंसान से कम होती है पर दोनों में कितना फर्क है| जानवर को पता होता है की कितनी ताकत का इस्तमाल कहाँ करना है और इंसान अभी तक इस पर खोज कर रहे है| जानवर ताकत का इस्तमाल केवल बचाव के लिए करता है और इंसान इसका इस्तमाल केवल दुसरे के नुकसान के लिए ही करता है|


मोती भी कुछ गुणों में ऐसा ही था| उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने मोती की जिंदगी में भूचाल मचा दिया| उसका यश मिनटों सेकेंडो में परिवर्तित हो गया जैसे अग्नि के ताप से पानी भाप बन कर हवा हो जाता है उसी तरह उसका यश भी हवा हो गया|  घटना इस प्रकार हैं हुआ यूं की मिश्रा जी के घर पर उस दिन केवल मिश्रानी जी और उनकी बहु ही थी, बहुरानी जो मिश्रानी आंटी का दिया हुआ नाम है आंगन में कुछ काम कर रही थी और मिश्रानी जी घर के बाहर  चारपाई पर बैठी थी| मोती जी भी चारपाई के पास ही आराम फरमा रहे थे| सर्दी की नरम नरम धुप मोती जी के शरीर को सेंक रही थी और मोती जी स्वर्ग के वातावरण का आनंद ले रहे थे| मिश्रानी जी भी धूपके नशे से सराबोर थी की तभी बहुरानी की चीखने की आवाज़ आई अम्मा बचाओ दोनों तेज़ी से आंगन की तरफ लपके आंगन में पहुंच कर देखा की बहुरानी एक तरफ खड़ी है और दो बंदर आगन में बैठे थे| और आराम से घर का मुआयना कर रहे थे | हालाकिं उन्होंने बहुरानी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था फिर भी बंदरों के डर के कारण वो कांप रही थी| मिश्रानी आंटी ने बंदरो को धमकाया पहली बार तो बंदरो ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई समझदार इंसान किसी बेवकूफ को देखता है| जब दूसरी बार उन्होंने धमकाया तो एक बंदर ने दांत  दिखा कर आंटी जी तरफ रूख किया, शायद डराने के लिए और मिश्रानी आंटी दुसरे कमरे की तरफ दौड़ी अब मोती ने भौकना शरू किया तो बंदरों ने मोती को भी डराने के लिए वैसा ही किया जैसे उन्होंने आंटी जी को डराया था| लेकिन मोती डरने वालो में से नहीं था उसने और जोर से भोकना शरू कर दिया मोती की आवाज़ इतनी जबरदस्त थी, की कुछ देर में वंहा पूरा मोहल्ला एकत्रित हो गया  बंदर और मोती में भयंकर वाक् युद्ध चल रहा था कभी मोती पीछे हट जाता तो कभी बंदर दोनों एक दुसरे को काटने को तैयार थे| लगभग २० मिनट तक लगातार भोकने के बाद आखिर मोती कामयाब हो गया और दोनों बंदरो ने अपनी हार स्वीकार कर ली,  दोनों जिस रास्ते से आये थे उसी से वापस हो लिए| इस जीत ने मोती के भाग्य को बदल कर रख दिया पुरे मोहल्ले में उसकी वीरता के गुणगान होने लगे सभी मोती की तारीफ करते नहीं थकते थे |

मोहल्ले के  दुसरे लोग भी, जिन्होंने कुत्ते पाल रखे थे| अपने कुत्तो को रोज़ यही समझाते नज़र आने लगे थे, की मोती से कुछ सीखो उसके जैसा बन कर दिखाओ मोती के इस शौर्य ने महल्ले के बाकि कुत्तो पर अच्छी पेर्फोमांस के लिए बहुत ही ज्यादा प्रेशेर बना रखा था| वे दिन रात इस प्रेशेर से बाहर निकलने के लिए सोचते रहते थे| लेकिन बंदरो के सामने जाने में  उनकी हवा ख़राब होती थी| बंदरो के सामने पीटने से बढ़िया उन्हें प्रेशेर झेलना ज्यादा आसान लगा | 
उधर मोती धीरे धीरे मोहल्ले का हीरो . वन बनने लगा था जिस भी घर में कोई बंदर आता उस ही घर से आवाज़ आती मोती मोती और मोती शक्तिमान की तरह हाज़िर हो जाता, शायद मोती का खौफ बंदरो में व्याप्त हो गया था| मोती आता और थोड़ी देर भों भों करता और बंदरो को जाना पड़ता इस के बदले में मोती को जो शाबाशी मिलती उससे मोती और मिश्रा परिवार का सीना  चोडा हो जाता |
कभी कभी आपका किया मात्र एक कार्य आपके जीवन की काया कल्प कर देता है| यह बात पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों वे में लागु होती है| इसलिए किसी भी काम को करने से पहले ये जरुर सुनिश्चित कर लेना चाहिए की इस कार्य का परिणाम कही आपको या आपके परिवार को अपयश की और तो नहीं ले जायेगा, क्योंकि हम केवल कार्य कर सकते है उसके परिणाम पर हमारा कोई वश नहीं होता, वो तो केवल समय के ही हाथ में होता है और ये हम सब अच्छी तरह से जानते है की समय किसी का सगा नहीं है | ऐसी ही एक दुर्घटना मोती के साथ भी हो गयी | जिस के कारण आज मोती इस पन्ने तक पहुंचा|
कुछ दिनों से मोह्हल्ले में एक नए बंदर का आतंक मचा हुआ था| वो काफी मोटा ताकतवर और देखने भी खतरनाक लगता था|  वह कई बंदरों को घायल कर चूका था|  उसका ऊपर वाला होठ कटा हुआ था इसलिए वह होठ कटा बंदर  नाम से मशहूर हो गया था| धीरे धीरे वो आस पास के सभी बंदरो का सरदार बन गया था| लेकिन उस की खुशकिस्मती थी की उसका सामना अभी तक मोती नाम के महा नायक से नहीं हुआ था| मोती ने भी उसका नाम अन्य लोगो से सुन लिया था आखिर वो दिन भी गया जिसका सभी को इंतजार था| उस दिन मिश्रानी जी आगन में बैठ कर भोजन कर रही थी शायद मोती की बहादुरी ने उनके मन से बंदरो के डर  को इस कदर समाप्त कर दिया था, की वो अब इतनी बेखोफ हो चुकी थी की खुलेआम खाना खाने का दुसाहस किया और  इस दुसाहस  का परिणाम तो उन्हें भुगतना ही था| अभी आंटीजी ने खाना शुरू ही किया था, की सामने होठ कटा बंदर प्रकट हो गया| उसे देखते ही आंटीजी के गले से निवाला उतरना मुश्किल हो गया मिश्रानी जी 100mb/s की स्पीड से खाना छोड़ कर कमरे की तरफ लपकी अंदर पहुंच कर उनकी साँस में साँस आई तब उन्होंने देखा बंदर मज़े से चावलों का आनंद ले रहा था  | मिश्रानी आंटी ने बंदर को धमकाया लेकिन वो अपने काम में तल्लीन रहा डंडा दिखने पर वो मिश्रानी आंटी की तरफ लपका जैसे कह रहा हो इन डंडों से मैं नहीं डरता | अब आंटी को अपना ब्रहमास्त्र इस्तमाल करना पड़ा|
मोती मोती की आवाज़ हवा में लहराई और मोती शक्तिमान की तरह तुरंत प्रकट हो गया| भों भों की आवाज़ से पूरा घर गूंज उठा लेकिन ये क्या जिस मोती की आवाज़ से अच्छे अच्छों के पसीने छुट जाते हैं| उस आवाज का इस बंदर पर कोई असर नहीं पड़ा अब तक इस भिडंत की खबर पुरे मोह्हल्ले में फैल चुकी थी| धीरे धीरे पूरा मोह्हल्ला मिश्रानी आंटी के घर में इकठ्ठा होने लगा |
मोती हूश मिश्रानी आंटी ने मोती का उत्साह बढाया
मोती ने फिर जोर लगाया लेकिन बंदर है के हिलने का नाम ही नहीं ले रहा |
मोती हूश मिश्रानी आंटी ने जोर दे कर कहा आखिर उनकी भी तो इज्ज़त का सवाल था|
मोती ने आंटी को इस अंदाज़ में देखा मनो कह रहा हो|
क्या हूश हूश लगा राखी है, इतनी जल्दी है तो खुद आकर भोंक लो|        
पर मोती का काम तो भोकना था, उसने पुन: जोर लगाया |
भों भों इस बंदर ने कुछ हरकत दिखाई उसने भी अपने दांतों से मोती को डराया
लेकिन मोती डरने वालो में से कंहा था मोती ने फिर जोर लगाया भों भों |
बंदर पहले वाली स्तिथि में चूका था| मोती भोंकते भोंकते थक चूका था उसकी जीभ बाहर चुकी थी, शरीर पूरी तरह कम्पन कर रहा था| बंदर ने भी अपना भोजन ख़तम कर लिया था|
मोती हूश मिश्रानी आंटी की आवाज़ फिर मोती के कानो में गूंजी|
मोती ने पहले तो आंटी की तरफ गुस्से से देखा|
जैसे कह रहा हो बस कर बुढिया देख नहीं रही कितना मोटा बंदर है अगर ये लड़ने गया तो क्या हाल करेगा|
फिर सोचा चलो आखरी बार प्रयास किया जाये क्या पता काम ही बन जाये |
इस बार मोती ने पुरी ताकत जोड़ी और मोती पुरी तेज़ चिलाया भों भों  पूरा घर गूँज उठा |
लेकिन ये क्या जिस बात का मोती को डर था, वो ही हो गया  वो मोटा बंदर गुस्से में मोती तरफ बढ़ा मोती का भोकना अचानक बंद हो गया|
तडाक इस आवाज़ से पहले मोती को एक लहराता हुआ थप्पड़ अपनी और बढ़ता तो दिखा था  और उसके बाद सुन्न्नन्न्न्न की आवाज़ के अतरिक्त कुछ नहीं सुनाई दिया हाँ सम्पूर्ण ब्रहमांड अवश्य दिखने लगा था |
मोटे बंदर ने मोती के गाल पर उसकी बहादुरी की रसीद चिपका दी थी, फिर उसके बाद मोती को सूरज की भरपूर रौशनी में भी सभी तारों और ग्रहों का दर्शन हो गया बंदर अपना काम करके चला  गया और मोती बेहोश जी उस युद्ध के मैदान में पड़े रहे | मिश्रानी आंटी की हूश हूश ने मोती को इस अनजाम तक पहुंचा दिया था जिसका भय मोती के मन में था |
जब मोती के उपर पानी डाला गया तब जाकर मोती जी को होश आया और मोती जी झट से दौड़ कर घर में घुस गया
उस दिन के बाद जब भी मोती जी को बुलाया गया मोती बंदर तो मोती को  ढूँढना मुश्किल हो जाता क्योंकि बंदर का नाम सुनकर मोती छिपने की जगह ढूँढने लगता था | एक घटना ने मोती के सारे यश को अपयश में तब्दील कर दिया | 
अब मोती को सम्मान नहीं तिरस्कार मिलने लगा हर कोई उसे देख कर हसंता | लोगों की हंसी का मोती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था पर एक शख्श ऐसा था जिसे लोगोंकी ये हंसी तीर सी चुभती थी वो मिश्रानी आंटी | जब भी कोई मोती पर हँसता तो उनका दिल टूट जाता उन्होंने मोती को हमेशा से ही अपनी संतान की तरह से समझा था |
उस घटना के बाद मोती जब भी आंटी के पास आता तो आंटी उसे या तो भगा देती या खुद  वहां से चली जाती |जानवरों में भी भावनाये होती हैं वो प्तेम और तिरस्कार में फर्क समझते हैं और शायद मोती इस तिरस्कार का कारन भी जनता था वो बार बार मिश्रानी आंटी के पास आने की कोशिश करता पर उसे सफलता मिलती।
एक दिन जब मिश्रानी जी बाज़ार से कुछ सामान ले कर रही थी। तब रस्ते में एक बन्दर ने उनका सामान छिनने की कोशिश करी सामान शायद ज्यादा कीमती था इसलिए आंटी ने थैला नही छोड़ा लेकिन बंदर भी उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। उसे लेकर मिश्रानी जी और बंदर में जंग हो गयी। एक चीख निकली बचाओ जो मोती के भी कानो में भी पड़ी मोती दोड़ता हुआ आया लेकिन बंदर को सामने देख कर मोती के पैर जम गए। वो  चाह कर भी आगे नही बढ़ पा रहा था उसका डर उसे आगे नहीं बदने दे रहा था।
जब बंदर को लगने लगा की बिना हमले के थैला नहीं मिलने वाला उसने अपनी ताकत का ईस्तमाल किया और आक्रमण कर दिया इस आक्रमण ने मोती को झकझोड़ दिया अपनी मलकिन पर हमला वो बर्दास्त नहीं कर पाया और वो भी लड़ाई में कूद पड़ा ।तब तक मिश्रानी आंटी बंदर के हमले से घायल हो चुकी थी इस लड़ाई मर बंदर ने मोती का भूत उतार दिया थोडा बहुत बंदर भी घायल हुआ लेकिन मोती का बुरा हाल हो गया वो मिश्रानी आंटी के चिल्लाने पर मोहल्ले के लोगो ने मिल कर बस बंदर को भगा दिया लेकिन तब तक मोती अपनी एक टांग गवां चूका था।
मोती की हालत बहुत ही ख़राब हो चुकी थी लेकिन फिर भी मोती खुश था क्योंकि उसे अपनी मालकिन का प्यार मिल चूका था
प्रेम भी  अदभुत  है इंसान इतना समझदार होने के बाद भी इसकी कीमत को नहीं समझ सका  लेकिन जानवर प्रेम की कीमत को शायद मानव से ज्यादा अच्छी तरह से जानता है। तभी तो जरा से प्रेम के लिए वो अपनी जान तक भी दांव पर लगा सकता है।
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