जाने क्यों
दिल इतने करीब हैं मेरे
हर रोज़ एक
नयी उर्जा भरती हैं मुझ में
मन को
प्रफुल्लित करती हैं मेरे
ये ओंस की
बूंदे
हर फूल
पत्ती हर पेड़ पोधे
हर जरे से आलिंगन करती
उन्हें नयी
सुन्दरता प्रदान करती
चारो तरफ है फैली
मन को सुकून
देती
ये ओंस की
बूंदे
सूरज की
पहली किरण से
नव योवना के
श्रंगार से दमकती
हर मन में
ताजगी भरती
ये ओंस की
बूंदे
सूरज को देख
शरमाती
अपने
पारदर्शी बदन को छिपाती
अपने को
बचाती
नव जीवन की
प्रतिक
ये ओंस की
बूंदे
हर रोज धुप
से लडती
और फिर हर
कर
जाने कहाँ
छिप जाती
ये ओंस की
बूंदे
फिर होते ही
निशा आगमन
जाने कहाँ
से प्रकट हो जाती
और फैला कर
बांहों का दामन पूरी धरा को आगोश में भर लेती
ये ओंस की
बूंदे
सूरज को हरा
अपनी जीत पर
इतराती
जैसे उसे
मुह चिढाती
और पैर
फैला कर सो जाती
कितनी हसीन
प्रतीत होती
ये ओंस की
बूंदे
कितनी
प्यारी
कितनी
सुन्दर
मन लुभावनी
ये ओंस की
बूंदे
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