Sunday, November 30, 2014

लघु कथा- ग़लतफ़हमी



ग़लतफ़हमी

दीनू राम शरण बाबु का ड्राईवर था वो अपने मालिक की बहुत इज्ज़त करता था इसलिए नहीं की उन्होंने उसे रोज़गार दिया था बल्कि इस लिए की उसके मालिक के दिल में गरीबों के लिए बहुत प्यार था वो रोज़ इस मंदिर में आते थे और गरीबों को दान देते थे |
इन्ही विचारों में खोये दिनू की नज़र मंदिर की सीढीओं पर बैठी बुढिया पर पड़ी |
बाबु जी मुझे लगता है वो आम्मा जी है रामशरण के उसके पास आने पर उससे उस अंधी बुढिया की और इशारा करते हुए दीनू ने कहा 
रामशरण की माँ को दीनू हमेशा ही अम्मा जी ही कहता था जो एक साल पहले अचानक गायब हो गयी थी
कौन वो नहीं नहीं वो नहीं है
नहीं बाबूजी वो ही है रुको मैं पूछ कर आता हूँ
नही चलो यहाँ से ये तुम्हारी गलतफमी है राम शरण ने क्रोध के स्वर में कहा  दीनू गाड़ी चलते हुए सोचने लगा ग़लतफ़हमी हुई नहीं दूर हो गयी|  

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