Sunday, November 30, 2014

अकेलापन




अकेलापन

विचारों का एक समुंद्र
ज्वार भाटे की तरह
कभी उठता था
कभी गिरता था
मेरे अपने करीब मुझे
जो लेजाता था
वो था मेरा अकेलापन
आज भी याद है
वो प्रत्येक
जो था विलष्ण
जाना जिसमे मैंने
अपना अन्तकरण
वो समय था जब साथ था मेरे
वो मेरा अकेलापन

किन्तु
आज की भीड़ भाड
हर तरफ होते
बेवज़ह के धूम धडाम में
दिशा विहीन रफ़्तार में
खो गया है कंही मुझसे
वो मेरा अकेलापन

आज मैं भी भाग रहा हूँ
सफलता की इस अंधी रेस में
दोड़ कर इस रफ़्तार में
पाया मैंने भुत कुछ
किन्तु हाथ से छुट गया
गिर कर कंही खो गया
वो मेरा अकेलापन

तब से ही
पागलों की तरह
व्यस्तता की धूल में
ढूंढ रहा हूँ
मेरे आत्मदर्शन का साधन
वो मेरा अकेलापन

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